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Rakesh Sahu

Abstract

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Rakesh Sahu

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मत आना लाडो इस आंगन में

मत आना लाडो इस आंगन में

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माफ़ करना लाडो

बन ना पाऊंगी तेरी मां,

जितनी पाबंदी मेरे लिए थी

उतनी ही तेरी लिए भी है मेरी मां।


सपनें तो में ने अनगिनत सजाए थे

तेरी आने की खुशी में,

पर ना जाने क्यूं

 तेरे अपनों ने ही तुझे बोझ समझ बैठे,

जो लड़की बनके पल रही है मेरी कोख में।


कैसे जताऊं तुझे

 मेरे इस दिल के दर्द को,

यहां तेरी ही आपने तो नाराज़ है

तुझे अपनाने को।


अब भला बता

 खुशियां केसे नसीब होगी तुझे

बस कट जाएगी जिंदगी तेरी तानों में,

आशियाना तो तेरे दूसमनों से भरे

मत आना लाडो कभी इस आंगन में।


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