निशा निमंत्रण
निशा निमंत्रण
रात कहने को चुप सा,
पर समेटे है कई रहस्यों का तराना।
रात कहने को अंधकार और वीराना
जो देखे धरा से अम्बर को,
मानो हीरे मोती और माणिक्य का खजाना हो।
रात कहने को भयानक और डरावना,
चन्द्र किरणों की ज्यूँ पड़े छाया जो,
धरा पे उतरी कोई दिब्य माया हो।
अद्भुत होता तब वो दृश्य
हर पल और सुहाना जो।
यूँ निशा मतवाली लगती
बड़ी भोली भाली, पर मिलन के लिए
बन जाती है सुखदाई।
और विरहन को लगती है
अति विकराल काली।
रात कहने को चुप सा,
बस चुप सा
पर समेटे है कई रहस्यों का तराना।
रात कहने को खामोश और वीराना,
उस पर जरा देखो इसकी गहराई को
दिखता नहीं नयनों को खुद की परछाई लो।