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Sheel Nigam

Fantasy

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Sheel Nigam

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राहों की पगडंडी

राहों की पगडंडी

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राहों की पगडंडी मुझे नदिया तक ले जाती है.

कभी पेड़ों की झुरमुट में, कभी हरे खेतों से होकर,

कभी निर्झर झरनों के संग ठुमक कर,

नदिया के दामन तक पहुँचाती है

ममता से भरा नदिया का आँचल,

ले लेता अपनी बाहें फैला कर

मुझे अपने आगोश में,

हाथों में पतवार थमा कर

कश्ती ले जाती बहुत दूर

मुझे अपने गाँव से।

अनजानी राहों में मिलते

बहुत से आँधी और तूफ़ान

लहरें भी खूब शोर मचाती, 

देती डग-मग करती 

मेरी कश्ती को भँवरों में डाल.

लहरों से लड़-झगड़ कर,

भँवरों में उलझ-सुलझ कर,

कल-कलाती, छल-छलाती

मेरी कश्ती पहुँचती सागर में

लिए जीत का अभिमान। 

मेरी राहों की पगडंडी नदिया

तक ले जाती है।

नदिया की कश्ती मुझे दूर देश ले जाती है।

नदिया की अविरल धारा मंज़िल तक पहुँचाती है।

मंज़िल तक पहुँचा कर नदिया,

अपने गंतव्य को आगे निकल जाती है

प्रेमी से मिलने निकली अभिसारिका सी,

सागर पर न्यौछावर हो जाती है।


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