मोहब्बत मेरी पराई
मोहब्बत मेरी पराई
सह न पाऊंगा सजाओं यारों अब तुर्बत मेरी
काटने से भी नहीं कटती शब-ए-फुर्कत मेरी
छोड़ने की कर रहा कोशिश मगर छूटती नहीं
तुमसे मिलने की छुड़ाऊं कैसे मैं आदत मेरी
है मेरी राह-ए-तलब मैं चढ़ सकूं आकाश पे
मंजिलें हासिल करूं सब है यही चाहत मेरी
हर नज़ारों में तुम्हारा ही नज़ारा दिख रहा
मिस्ल-ए-आशिक हो रही है आज़ कल फ़ितरत मेरी
सांझ होते-होते जानाँ याद आती है तेरी
कौन आकर के मिटाएं हाय ये ग़ुर्बत मेरी
कल जिसे अपनी समझकर हक़ जताता था वही
और किसी की हो चुकी है आज़ मोहब्बत मेरी

