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Madhu Gupta "अपराजिता"

Fantasy Others

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Madhu Gupta "अपराजिता"

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बारिश

बारिश

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बारिश की बूंदों ने देखो ये कैसा जादू बिखराया है l

प्यासे शज़र के पत्तों को फ़िर इक बार गले लगाया है ll


जो फूल पड़े थे मुरझाएं खिलने को थे बेताब बड़े l

उनको भी तन मन दे कर के अपना कायल बनाया है ll


दर्द से जो दिल डोल रहे आँखों से अश्कों को रोक रहे l

उन अश्क़ों को भी संगी अपना बना कर भरमाया है ll


नदियाँ सागर थे जुद़ा-जुद़ा ना मिलने का था दर्द बड़ा

ऐसा तूफ़ान उठाया बूँदों ने दोनों को इक कर डाला हैं।।


बारिश की बूँदों ने देखो ये कैसा जादू सा बिखराया हैं।

दे कर अपना तन मन हर शाख़ को दीवाना बनाया हैं।। 


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