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Madhu Gupta "अपराजिता"

Fantasy Inspirational

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Fantasy Inspirational

कभी नर्म नर्म कभी सक्त सक्त

कभी नर्म नर्म कभी सक्त सक्त

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कभी नर्म- नर्म कभी सक्त- सक्त

कभी चासनी तो कभी निरा नमक

लगती हैं तू तो कभी सर्द-गरम

तेरी हर बात हैं माँ सबसे अलग...!!


तेरी डाँट में भी हैं ममता का शहद

रहती है तू हर बात से अवगत

नारी हैं पर नर से बड़ कर

जब बच्चों की आती हैं बात अलग...!!


सूरज सी दहक उठती है तब

जब दर्द का हो कोई भी सबब

धरती अम्बर कर देती एक

ला कर देती हैं दुआ की दवा सबसे अलग...!!


हारी ना रुकी ना थकी कभी तू

बच्चों के भविष्य के लिये करती हैं वो सब

शक्ति भी दिखलाती पल में उनको 

और दूसरे ही पल आँखों से उड़ेलती प्यार अलग...!!


सब कहे रूप दूजा ईश्वर का तू

देती हैं जन्म तू बांध सर पे कफ़न

इसीलिए पिता से पहले आती माँ हरदम

तेरी ममता का रूप हैं संसार से अलग...!!



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