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Ravi Purohit

Romance

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Ravi Purohit

Romance

उड़ान तुम्हारी

उड़ान तुम्हारी

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तुम्हारी

यादों की खुशबू है

कि सांसों से

जाती ही नहीं...

रूहानी संगत का असर तो देख

कि तुम्हारी

सूरत के अलावा

और कोई सुहाती नहीं...


तुम ही भीतर

तुम ही बाहर

अनेक मोहक रूप

इस चराचर में

पर कोई

नवगीत सुनाती नहीं...


रोम-रोम में तुम बसे हो

साथी मेरे इस तरह

कि मेरा ‘मैं’ ही

मुझको अब मिलता नहीं !


उड़ान तुम्हारी बाहर-भीतर

धरती-अम्बर

नदिया-समंदर

जीव-चराचर

कहां-कहां उड़ा ले जाती जाने मुझको

कैसे कहूं

बौनी या छोटी इसे!


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