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Amit Kumar

Abstract Romance

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Amit Kumar

Abstract Romance

तुम्हारी स्मृति में

तुम्हारी स्मृति में

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ये पतझड़ तुम्हारी

यादों का

बहार बन गया है

तुम्हारी स्मृति में

तुम्हारी स्मृति अब मुझे

"आषाढ़ का एक दिन" की

मल्लिका सी लगती है

और स्वयं को मैं

ठगा हुआ कालिदास का

प्रतिद्वंदी विलोम सा

महसूस करता हूँ ....

नहीं जानता तुम

मेरी इस विचारग्नि पर

किस तरह का

अमृतजल बिखेरेगी...

ये मेघ जो कभी काले और

घने से उमड़ आये थे

तुम्हारे यौवन पर

अब कुंठाओं से घिरे हुए

कोई काँटों की

अमरबेल से काले

घने स्याह सर्पझुंड

से लगते है......



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