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Rashi Singh

Drama

3  

Rashi Singh

Drama

तुम बिन

तुम बिन

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​आँखों से मेरी जज्बात बह निकले

​मुद्दतों बाद जब वो हमसे मिले l

​गुजरे जब भी वो रहगुजर से मेरी

​मुझे रुसवाई और ताने ही मिले l

​रुके नहीं हम और न ही, रोक सके

​एक बार फिर पहचाने अजनबी से मिले l

​खोकर दुनिया की भीड़ में भूल उनको गए

​आज फिर जख्म ताजा ... पुराने हो गए l

​दिल की लगी को कह दिल्लगी मुस्करा वो दिए

​जिनके लिए तकदीर से हम लड़ गए l

​आये हैं, मेरे जनाजे पर वो यूँ सज -सँवर कर,

​जीने को दिल चाहता है, अब तो मरकर !

​ज़िंदा रहकर भी कहाँ जिन्दा हूँ तुम बिन

​करके क़त्ल अरमानों का ,तुम मुस्करा दिए l

​तड़प दिल की क्या है यह न पूछिए

​अब जी न सकेंगे तुम बिन लौट आइये l

​आज वो चाँद भी गमजदा सा लगा

उसको ​मेरे चाँद का दीदार जो न हुआ l

​महफ़िल में ढूंढते हैं तन्हाई में ढूंढते है

​खो गए हैं इस तरह तुझमें खुद को ढूंढते हैं l

​कुछ शिकवे कर कोई शिकायत कर

​यूँ खामो

शियों से मुझको लहूलुहान न कर l

​अधूरे ख़्वाबों को मुकम्मल जहां मिल जाए

​जी उठूं मरकर भी जो तू एक बार मुस्कराये l

​आँखों में मेरी तेरा ही चेहरा मिलेगा

​जब भी उठाओगे आइना नजर हम ही आएंगे l

​रूठकर जाने वाले पलटकर तो देख ज़रा

​छीनकर दिल मेरा ज़िंदा लाश बनाकर न जा l

​तू जर्रे जर्रे में बसा है, दिल चीज क्या है

​क़यामत आने को है कुछ खौफ तो खा l

​अपनी मुस्कराहटों की चादर में लपेटकर

​चले गए तुम रोता हुआ इस दिल को छोड़कर l

​इजहारे दिल मेरे इस दिल में ही रह गया

​दुनिया की भीड़ में वो न जाने कहाँ खो गया l

​लौट आओ जिस्म से जान जुड़ा होने से पहले

​वरना रुसवाई मासूम मोहब्बत की होगी l

​मेरी आँखों में जो अश्क बहते हैं

​बयान एक दर्द भरी कहानी करते हैं l

​आज काजल की धार भी भीगी सी है

​तेरी जुदाई ने रुला जो इसको दिया l



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