कौन हो तुम ?
कौन हो तुम ?
तुम्हारी मन मोहक मुस्कान
तुम्हारे नैना हैं तीर कमान
नितम्बों पर ढला
दुपट्टा सुनाता है
तुम्हारी सांसों की
मध्यम और
तीव्र तान।
ललाट पर झूलती
लट मन में
उतारे बिच्छू एक
हजार
मूँगे से अधरों पर
गुलाबी गुलाबी
मुस्कान।
गज गामिनी
सी गर्दन तुम्हारी
हंसिनी शरमाए
कमरिया की
लचक
बेल अंगूरों
क़ो देती मात
कदमों की अदा
धरा का चीर कर
कलेजा
अंबर तक जाए
रचयिता भी
ललचाये।