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Rashi Singh

Abstract

3  

Rashi Singh

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'बताओ चाँद कैसा था '

'बताओ चाँद कैसा था '

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​चांदनी बिखेर रही थी आँचल 

​नवयौवना के बेफिक्र आँचल सी 

​और खूबसूरत दिख रहे थे नजारे 

​नवदुल्हन की तरह 

​बताओ चाँद कैसा था ?

​बताओ चाँद कैसा था ?

​मेरी महबूबा सा सोना 

​या मामा सा प्यारा था 

​बताओ चाँद कैसा था ?

​चहलकदमी जब की तुमने 

​क्या दर्द उसको हुआ था 

​या पैर रखकर उसके दाग पर 

​दुखी रग क़ो तुमने छुआ था 

​बताओ चाँद कैसा था ?

​उस पर भी बह रही थी हवा 

​बोल वाला पेड़ों का था 

​क्या नदी , पहाड़ चट्टान 

​सारा नजारा प्रथ्वी सा था 

​बताओ चाँद कैसा था ?

​ढूँढ लेना हर चीज वहां पर 

​पर मक्कारियो क़ो ले जाना नहीं 

​खूबसूरत ही था या मासूम भी 

​किसी मासूम बच्चे की तरह 

​बताओ चाँद कैसा था ?

​सम्पर्क बना दो भाई बहन का 

​हम भी पुकारेंगे कह मामा 

​माँ क़ो भी लगेगा भला 

​उसके बच्चों की तरह 

​बताओ चाँद कैसा था ?

​क्या दिखाई दे रहे थे वहाँ भी 

​सूरज और टिमटिमाते तारे 

​जो करते हैं मंत्रमुग्ध सारे 

​दुनियाँ क़ो दिखाते हैं ख्वाब कई 

​बताओ चाँद कैसा था ?



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