तुम बिन कैसे
तुम बिन कैसे
तुम बिन कैसे कटती रातें
कैसे गुज़रते दिन यहाँ
समझाऊं कैसे नादाँ दिल को
नासमझ समझते कहाँ।।
अक्सर जिन अश्कों को
छिपा लेते थे पलकें मेरी
उन पलकों की गूँजे फरियाद
दबी जुबाँ जहाँ तहाँ ।।
कुबूल थी कैद जिन दर्दों को
दहलीज में दिल की अपनी
बिफ़र बिफ़र कर बिखर पड़े हैं
कैसे समेटूँ साँसें कहाँ।।
जब साथ तेरे अहसास मेरे
अफ़सोस सारे बिसराये थे
आपस उस अरसे को तरसे
चैन कहाँ सुकून कहाँ।।
एक ताजमहल भी थी अपनी
हर साज पे हमारा राज था
टूटे सपनों के बिखरे अवशेष
ताज कहाँ मुमताज़ कहाँ।।
अब जीने की चाह मरने को है
मोहलत मौत से उधार है
मत पूछो कैफियत कफनों से
दफ़न के बाद कफ़न कहाँ।।