तो अच्छा होता
तो अच्छा होता
ये दिल, दिल जो धड़कता है,
ख़ुद में यादें क़ैद करता है,
ग़र रूक जाता आज तो अच्छा होता।
उन यदों का हर एहसास,
एहसासों से जुड़ा हर जज़्बात,
ग़र मिट जाता आज तो अच्छा होता।
ये पलकें, पलकें जो बंद होती हैं,
महफ़िल से छिपाकर अश्कों का भार ढोती हैं,
ग़र बह जातीं आज तो अच्छा होता।
मैं आज नहीं पियूँगी उन्हें,
वो दो अश्कों की धार, कहानी मेरी,
कह जाती आज तो अच्छा होता।
ये ऑंखें, ऑंखें जो सपने देखती हैं,
हर अक्स हर शख्स को ख़ुद में समेटती हैं,
ग़र धुंधला जाती आज तो अच्छा होता।
सपनों में दिखती तस्वीरों की झड़ी,
जुड़ती उनसे खुशियों की लड़ी,
ग़र टूट जातीं आज तो अच्छा होता।
ये हाथ, हाथ जो उठते हैं,
दुआ करते हैं कभी, कभी तुम्हें रोकते हैं,
ग़र थम जाते आज तो अच्छा होता।
दुआ में शामिल सुनहरे कल के ख्वाब,
खुदा से मॉंगे उनके हर जवाब,
ग़र खो जाते आज तो अच्छा होता।
ये हम, हम जो पहले सोचते थे,
खुशनुमा, कुछ लम्हों की चादर ओढ़ते थे,
लगता था वो पल जिनमें डूबे थे हम,
ग़र ठहर जाते आज तो अच्छा होता।
पर अब है मन में कुछ और ही पलता,
ये दिल, ये ऑंखें, ये हाथ और हम,
ग़र ना होते आज तो अच्छा होता।