वो भी एक दौर था
वो भी एक दौर था
वो भी एक दौर था,
यह भी एक दौर है,
जो कल जश्न-ए-इश्क़ था,
वो आज चुभता शोर है।
आज जो है वो रूबरू,
हम फिर कुछ मदहोश हैं,
तब आँखों से पीते थे,
आज शराब का दोष है।
साकी तो वो ही है,
हम तो बस बहक जाते हैं,
गिरते, संभलते धुन मे उसकी,
फिर बढ़ते उसकी ही ओर हैं।
वो भी एक दौर था,
यह भी एक दौर है,
जो कल जश्न-ए-इश्क़ था,
वो आज चुभता शोर है।
रातें तब भी स्याह थी,
बातें तब भी शुमार थी,
रूह तक उसे छूने की पर,
ख्वाहिशें हर बार थी।
वो है यहीं,
क्या हम दूर हैं ?
एहसास उसका पलकों पे,
लिख जाता दास्तान कुछ और है।
वो भी एक दौर था,
यह भी एक दौर है,
जो कल जश्न-ए-इश्क़ था,
वो आज चुभता शोर है।
तस्वीर उसकी रखते थे हम,
वो तक़दीर हमारी लिखते थे,
हम दीवाने से उनके,
वो यूँ ही मज़ाक,
हमारे इश्क़ का उड़ा दिया करते थे।
वक़्त-वक़्त की बात है काफ़िर,
तब हम थे उसके आशिक़,
वो आज अपने जुनून का,
हमें ही दिखाते गुरूर हैं।
वो भी एक दौर था,
यह भी एक दौर है,
जो कल जश्न-ए-इश्क़ था,
वो आज चुभता शोर है।