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Uma Shankar Shukla

Tragedy

4.7  

Uma Shankar Shukla

Tragedy

स्वार्थ के रिश्ते

स्वार्थ के रिश्ते

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किसको फुर्सत दूसरों का ग़म उठाने के लिए।

हमसफर सब स्वार्थ के रिश्ते निभाने के लिए। 


आस्था विश्वास पर आघात करके लोग अब, 

आ गए महफिल फरेबों की सजाने के लिए ।


झूठ  के  साहित्य  मिलते  हैं  सरे बाजार में ,

और  सच्चाई  है गुम  सारे  जमाने  के लिए। 


नीति नैतिकता किताबी ज्ञान बनकर रह गयी,

खोखले  आदर्श  केवल  हैं  दिखाने  के  लिए। 


बेरहम  की  भीड़  में  दबकर मरी इन्सानियत, 

शख्स  कोई  भी  नहीं  आया  बचाने के लिए। 


बेअदब तहज़ीब ने रिश्तों को घायल कर दिया

अब नहीं दिखता कोई मरहम  लगाने के लिए। 


दिल हुए पत्थर मरुस्थल की तरह आँखें हुईं, 

हैं तरसते लोग  गुजरे  दिन  सुहाने  के  लिए। 


कल मरी मछली से कोई ताल गन्दा था हुआ, 

घात बगुले आज फिर आए लगाने के लिए। 


है जरूरी छेड़ना अभियान मिलजुल कर हमें, 

हर प्रदूषित मानसिकता को मिटाने के लिए। 


   


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