स्त्री जीवन नदी समान
स्त्री जीवन नदी समान
नदियां हूं मैं बहती हूं ..
बहना मेरा काम, निरंतर बहती रहती हूं
सबकी प्यास बुझाती हूं मैं
पर मेरे प्यास को जाने कौन...
मंज़िल मेरी हर कोई जाने
पर रास्ता मेरा पहचाने कौन...
बहते बहते राहों में
जब पत्थर कोई मिलता है
होती है तकलीफ मुझको भी
ठोकर मुझे भी लगती है
तन मेरा भी छीलता है
झेल के सारी तकलीफों को,
फिर आगे बढ़ जाती हूं
बहना मेरा काम है
निरंतर बहती जाती हूं
अंत मेरा है खारा सागर
उसमें ही मिल जाती हूं...
खो कर अपनी मिठास
तब मैं भी खारी हो जाती हूं....
खोती हूं तब अपनी पहचान मैं
मिल कर खारे सागर में तब
मैं भी सागर कहलाती हूं....