सरकार बनाम महंगाई
सरकार बनाम महंगाई
महंगाई की मार पड़ी है, रो रहे कितने लोग,
महंगाई घट नहीं रही, बन गई है नासूर रोग,
अब तो नहीं लगता घी, चूरमें का जन भोग,
सरकार बनी लाचार,कैसा बना हुआ संजोग।
महंगाई महंगाई चिल्ला रहे, मिला नहीं ईलाज,
महंगाई बढ़ गई हैं, पता नहीं सरकार को राज,
महंगाई की मार झेलकर, चले जाएंगे ये लोग,
पर नेताओं को पसंद आ रहा, अपने सिर ताज।
पिछले कुछ समय से,फल सब्जी हुये महंगे,
चोली दामन अधिक पहने, घट गये हैं लहंगे,
विवाह शादियों का दौर, एक माह अभी बंद,
शिक्षा पा युवा वर्ग, आवाज करता है बुलंद।
सरकार हुई लाचार, महंगाई नहीं अभी घटी,
दाल,भात,सब्जी,आटा,बस भाड़े का रेट बढ़ा,
महंगाई का दौर भी आकाश छूने को जा रहा,
महंगाई का दौर रुके नहीं, जाएगा यह कहां ?
