STORYMIRROR

Khatu Shyam

Drama Classics Fantasy

4  

Khatu Shyam

Drama Classics Fantasy

सफर मेरी मोहब्बत का (वो शख्स)

सफर मेरी मोहब्बत का (वो शख्स)

1 min
342

वो जैसे मेरे जिस्म का एक अंग था ,

दूर होकर भी वो हमेशा मेरे संग था।


बिखरती -सिमटती रही यह जिंदगी,

इस फिजा का वह जैसे कोई रंग था।


कही खिलते है क्या गुलाब बिन कांटो के,

जीत का रंग बिना मुश्किलों के बदरंग था।


चाहत रहती इस दिल में उसको पाने की, 

दिल में रहने वाला वह भी मुझ जैसा तंग था


दूर होकर अब भी बसा रहा वह इस दिल में, 

उसकी पाक मुहब्बत का यही तो अजब ढ़ंग था।

 

कहने को तो रिश्ते अब टूट गए दिलो के सारे,

बचा रहा कैसे वह दिल मे देख दिल भी दंग था।


दिल में रहने वाला शख़्स इश्क़ था राधे का,

या दिल और जिंदगी में चल रहा कोई जंग था।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama