संबंध
संबंध
विष विषम परिस्थितियों का ये हम रोज पिए जब जाते हैं;
तब जाकर इस जीवन घट के संबंध निभा हम पाते हैं ।।
सच को मिथ्या, मिथ्या को सच सब जान मानना पड़ता है
संबंध निभाने की खातिर हर बार हारना पड़ता है
इस स्वार्थवाद में घट घट पर निःस्वार्थ छले जब जाते हैं,
तब जाकर इस जीवन के संबंध निभा हम पाते हैं।।
संबंध निभाने की खातिर श्रीराम गमन वन को करते हैं,
संबंध निभाने को ही भरत राज पाठ सब तजते हैं,
जब देवव्रत से पितृभक्त प्रण हेतु भीष्म बन जाते हैं
तब जाकर इस जीवन के संबंध निभा हम पाते हैं।
जब देखा भीष्म और राम को, समझ यही बस आया है,
हर युग में कर्तव्य हेतु कोई मोल चुकाता आया है ,
निःस्वार्थ प्रेम के वृक्ष ये जब तप और त्याग से सींचे जाते हैं,
तब जाकर इस जीवन के संबंध निभाए जाते हैं।।
