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Apoorva Dixit

Tragedy

4  

Apoorva Dixit

Tragedy

अंतर्द्वंद्व

अंतर्द्वंद्व

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नित अंतर्द्वंद्व में हम जी रहे हैं,

नहीं विष और तो क्या पी रहे हैं,


ना जाने कौन सी वह रश्मि होगी,

हमारी विजय जो निश्चित करेंगी;


या यूंही हारते ही जाएंगे हम,

स्वयं को रोज छलते जाएंगे हम;


विभाओं विजय का पैगाम तो दो,

ना अब संघर्ष जीवन चाहता है,


ये मन विश्राम ही अब मांगता है।।

ये मन विश्राम ही अब मांगता है।।


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