सलाम तुझे
सलाम तुझे
ज़िंदगी जब करवट है लेती नारी के जीवन में
हसीन रुख़ पर थकावट की सिलवटें दे जाती है
चार कोने की झोंपड़ी को महल सा वो सजाती है...!
ख़्वाबों को पलकों पर तोले लकीरें लिखवाती है,
देती है जब चुनौतियां ज़िंदगी को भी सबक सिखाती है..!
एक नारी पर जब सारी ज़िम्मेदारी आती है,
इंट, पत्थर से खेलते ज़ात तक घिस जाती है,
जनम लिया जब, जीने को हर मंसूबे बनाती है
नारी सा कोई सहनशील नहीं, हर शय में ढल जाती है...!
अपनी हर अदा में माहिर परचम वो लहराती है
सर पर पल्लू कमर बलखाती तरबतर पसीने से
बच्चा बाँधे पीठ पीछे काम हर कर जाती है..!
बच्चों की ख़ातिर एक माँ किसी भी हद तक जाती है ...!
बैठे बड़ी कुर्सी पर भी दुर्गा सी बन जाती है
हाथ भले ही दो दिये पर चारों दिशा लड़ जाती है..!
दारु की बदबू से चिड़ती नासिका में भर लेती है,
मजबूरी को अपनाकर वश उसके हो जाती है,
दमन होता हर रात को पर सिंदूर सुबह सजाती है..!
उर है उसका गुलाब सा पर पत्थर दिल पर रखती है,
देखती है आँखें इसको तब, दिल से आह निकलती है,
सलाम सौ भै हर नारी के हक़ में तो बनती है॥