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Sachin Gupta

Children

4  

Sachin Gupta

Children

स्कूल के वो पल

स्कूल के वो पल

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ये गाड़ी , बंगला ले लो 

पर स्कूल के वो पल 

कोई तो मुझको लौटा दो।

 

वो बचपन का खेल 

वो स्कूल का रेल 

वो मास्टरजी का डंडा 

वो पांडे जी का घंटा 

कोई तो फिर से दिला दो 

 

स्कूल के वो पल 

कोई तो मुझको लौटा दो।

 

अब न लगता मन 

याद कर बीते पल को 

भर जाती है आँखें मेरी 

रोने लगता है मन।

 

ये गाड़ी, बंगला ले लो 

पर बचपन के वो पल 

कोई मुझको लौटा दो।

 

सोचा था बचपन में 

बड़ा होकर बड़ा बनूँगा 

अब बड़ा हुआ तो पता लगा 

सब कुछ, न जाने कब छूट गया 

अब गले तक घुटन है 

मन में भारी कराह है।

 

सोच- सोच लेता हूँ मैं मुस्कान 

वाह कितने प्यारे दिन थे वो 

टिपन चुराते थे एक दूसरे के 

सब कुछ, कर चटक 

जूठा छोड़ आते थे 

नहीं होती थी कोई लड़ाई 

बस बातों से लड़ लेते थे 

फिर वही कर गलती 

दोस्तों से टिफिन अपनी छुपाते थे 

माँ को पता न था कुछ 

कैसे हम सब 

स्कूल में पूरा खा लेते थे 

नहीं था कोई भेद 

पर अब तो माहौल बदल चुका है 

स्कूल के दोस्तों से 

आज को दोस्तों में 

बहुत कुछ बदल चुका है 

जिंदा तो थे तब हम 

अब तो बस हम लाशें है 

तभी तो बिलख- बिलख मन मेरा कह रहा। 

 

ये गाड़ी, बंगला ले लो 

पर बचपन के वो पल 

कोई मुझको लौटा दो।

 


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