“सिर्फ हम बदल गए हैं”
“सिर्फ हम बदल गए हैं”
ये भला चुप क्यों हैं ये भला मौन क्यों हैं
क्यों बधिरों की भंगिमा में ये संवेदनारहित क्यों हैं
आखिर सुई के नोक से कब तक इन्हें चुभाऊंगा
कब तक इन्हें जगाऊंगा आँखें तो सब निहार रही है
दूर दृष्टि और नजदीकी के फासलों से तो हम वाकिफ़ हैं
रंगों की पहचान तो है हम किसी एक दूसरे को जानते नहीं हैं
और ना हमने कोशिश ही कभी की संवाद करने की
यह कैसी मित्रता है किसी का नाम मुझे याद नहीं है
क्या करते हैं कहाँ रहते हैं इसका भी अनुमान नहीं है
मित्रता का आयाम अभी तक नहीं बदला है
सिर्फ हम बदल गए हैं मौन रहकर !!
