सफ़र
सफ़र
उस ज़िन्दगी के सफ़र की बात करते हैं,
जिसमें साथ हो कर कोई साथ न हो।
लोगों ने मुझे बेइज्जत बहुत किया,
पर आज उस मुकाम पर हूँ,
जहाँ लोगों के साथ होने के बावजूद में,
किसी का साथ नहीं चाहती।
हर उस महफ़िल में हमें भी बुलाते हैं,
बस हम उस महफ़िल में कदम नहीं रखते,
जहाँ लोग अपनी औकात भूल जाते है।
किसी से कोई गिला -शिकवा नहीं है,
उस समय और लोगों का शुक्रिया ,
जिनकी वजह से आज उस मुक़ाम पर तो हो,
जिसमें मुझे लोग देखना नहीं चाहते।
ज़िन्दगी एक ट्रेन की तरह हैं ,
जिसकी रफ्तार तो बहुत हैं,
पर पक्का स्टेशन कोई नहीं हैं।
अगर सड़क को भी देखें,
वहाँ पर बहुत तेज़ रफ़्तार से वाहन चलते हैं,
उसी तरह ज़िन्दगी एक हैं,
पर लोग बहुत हैं,
उन्हें समझना ओर समझाना बहुत मुश्किल हैं,
किसी का अंदाज़ा भी कम लगाना चाहिए,
मेरे दोस्त, हर एक तस्वीर असलियत तो बयान नहीं करती।