क्यों?
क्यों?
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हर एहसास को महसूस करना,
इतना आसान तो नहीं।
फिर लोग क्यों मज़ाक बनाते हैं,
हर एक की मजबूरी का,
क्यों?
हर रास्ते में हज़ारों मोड़ हों,
ये ज़रूरी तो नहीं,
फिर लोग हर मंज़िल का रास्ता,
इतना मुश्किल क्यों समझते हैं,
क्यों?
समन्दर की लहरें,
आसमान छूने का जज़्बा रखती हैं,
फिर लोग हर इंसान की कामयाबी पर,
अपना अंदाजा क्यों लगाते हैं,
क्यों?
हर काली रात के बाद ,
एक नई सुबह होती हैं,
फिर लोग हर दिन एक जैसा हो,
ये क्यों सोचते हैं,
क्यों?