दरमियाँ
दरमियाँ
क्या तुम भी इतना तड़प रहें हो?
जितना मैं भी तड़प रही हूँ।
क्या तुम भी मुझे हर वक्त महसूस कर रहें हो?
जैसे मैं भी तुम्हें महसूस कर रही हूँ।
क्या तुम भी मुझे समझने की चाहत रखते हो?
जैसे मैं तुम्हें समझना चाहती हूँ।
क्या तुम भी मेरे पास रहना चाहते हो?
क्योंकि मैं तुम्हारे पास रहना चाहती हूँ......
कुछ है क्या हमारे दरमियाँ?
जो मैं तुम्हारी तरफ़ खींची चली जाती हूँ......
हमारे बीच बहुत सारी उलझने हैं,
मैं उन्हें सुलझाना चाहती हूँ।
मेरे हर लफ्ज़ में तुम्हारा एहसास मौजूद हैं.....
अपनी ज़िन्दगी में तुम्हारी एहमियत बताना चाहती हूँ।
क्या दो लोगो की रूहें एक हो सकती हैं?
शायरी में मैं अपनी कहानी ब्यान करने की इज़ाज़त चाहती हूँ।
तुम मुझे देखते थे और मैं तुम्हें देखती थी,
क्या मुझे तुमसे प्यार हो गया था?
तुम तो जानते थे मेरे बारे में सब कुछ,
पर अपना न बता कर तुम्हारा दिल खामोश क्यों हो गया।
तुम्हारे अनकहे शब्दों ने बहुत कुछ कह दिया था,
और उन्हीं को सुनते मैने बहुत वक्त गुज़ार लिया था।
एक लम्हा तुम्हें रोता देख मुझसे सहन न हुआ,
क्या उस दिन तुमने मुझे याद किया?
मुझे देख अपना चहरा ही पलट लेना,
क्या तुमने मेरे साथ अपना दर्द बाँटना ठीक न समझा?
हम एक दूसरे के लिए ज़रूरी हैं,
क्या तुम्हें इस एहसास का अंदाज़ा हो गया?
जब भीड़ में तुम्हारी आँखे सिर्फ मुझे ढूँढ रहीं थी,
उसी वक्त तुम्हें देख मेरा शक यकीन में बदल गया,
आँखे बंद कर मेरी तस्वीर को अपने अंदर कैद करना,
क्या तुम्हें अच्छा लगता था मुझे ऐसे परेशान करना?
तुम्हारा यूँ आकर प्यार का इज़हार करना,
हमें अच्छा लगा तुम्हारा उस दिन हमारा हाथ पकड़ना।
चलो अब करें ज़िन्दगी में साथ रहने का फ़ैसला,
हमसफर बन ज़िन्दगी के सफ़र में साथ रहना।

