सारस
सारस
सारस की है चाल निराली।
धर है उजली पूँछ है काली।
गर्दन जिसकी मचलती जाये।
छम छम कमर लचकती जाये।
समंदर पर मोती को चुनता।
आसमान में ताना बुनता ।
सुन्दर है ये मनभावन है।
धरती पर जैसे सावन है।
दुर्लभ अब ये होता जाये।
पानी पर भी दौड़ लगाये।
पंछियों में है ये मतवाला।
अपनी धुन में जीने वाला।
इसकी रक्षा हमें करनी होगी।
विलुप्ति से अब लड़नी होगी।
आओ मिल कर आह्वान चलाये।
धरती पर इनका अस्तित्व बनाये।
