सामाजिकता
सामाजिकता
समाज वो दल-दल है जिसमें हर कोई जुड़ना नहीं चाहता है लेकिन यह समझ
वक़्त और हालात में बाकर खुद पे खुद जुड़ जाता है ...
मुझे ऐसे समाज की कोई जरूरत नहीं है जहां हम जैसे लोगों को नहीं समझा
जाता है और न ही हमें जानने की कोशिश की जाती है ..
मां बाबा और भाई बहन दोस्त रिश्तेदार सभी लोग समाज में जुड़े रहते हैं और
कहीं न कहीं हमे जुड़े रहने के लिए मजबूर कर देते हैं ...
हमें कानूनी तौर पर आलाद तो कर दिया फिर भी पता नहीं क्यों समाज की
दायिकानूसी बातों का हवाला देकर हमें बांध दिया जाता है..
बढ़ती उम्र के साथ सामाजिकता भाव से दूर भाग गया हुं मैं लेकिन मेरा वाजूद
आज भी उसी समाज में हीन भाव में जी रहा है।