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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

रुकी हुई सड़क

रुकी हुई सड़क

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तेज तर्रार रफ्तार से चलती सड़क कभी अचानक रुक जाती

चेहरे पर छाई नूर चाँदनी सायं सायं करके उतर जाती


अलिखित और अव्यक्त भावनाओं का सिलसिला जारी रखने से भी होगा क्या

शहरों और दरवाजों के किवाड़ बंद करने हुकूमत उतर जाती


ख़ौफ़ज़दा चेहरे ढंके हुए है बेबसी और लाचारी की जद से

सन्नाटे की खामोशी बहुत गहरे तक झकझोर कर उतर जाती


ख्वाबों के व्यापारियों का नशा ऐसा सिर चढ़ कर बोला

पंगु हुए मस्तिष्क में जीस्त की गुलामी उतर उतर जाती


चली है शहर में यह कैसी हवा कुर्बानी की

आये दिन गुलशन उजड़ने की खबरों से आग दिल में उतर जाती


इन कतारों से जलती लपटों ने छीन ली जिंदगी की रौनक ,'नालन्दा'

गुहार लगाती फरिश्तों से दुआ अर्श पर उतर उतर जाती


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