सीमा
सीमा
होती है हर बात की सीमा,
होता है हर जीवन का अंंत,
होता है हर पापी का नााश,
किंंतु नही होती है अच्छाई की सीमा
मानव का मानव के प्रति प्यार,
एक जाति का दूसरी जाति की तरफ झुकाव,
अमीरी का गरीबी के प्रति लगाव-
इन सब की है सीमा
किंतु सच्चाई की क्या है कोई सीमा ?
सीमा है जल की धारा की,
सीमा है झूठ की,
सीमा है बाहरी सुंदरता की,
परंतु क्या मन की सुंदरता की,
है कोई सीमा ?
सीमा है दुख की,
सीमा है सुख की,
परंतु नहीं है कोई सीमा
हमारे दृढ़ -संकल्प की।