मैं बारिश हूं
मैं बारिश हूं
सागर से बादल बनकर जब,
नभ मंडल में आती हूं।
प्यासी धरती की पीड़ा को,
मैं देख बहुत घबराती हूं।।
मैं वृंद लताओं का जीवन,
मैं जनजीवन की चाहत हूं.....मैं बारिश हूं ।।
तेज हवाओं के झोंके,
मेरी राहें बन जाते हैं।
मेरी बूंदों की आहट से,
बंजर में गुल खिल जाते हैं।।
प्यासी धरती की चाहत हूं,
मैं जनजीवन की राहत हूं.....मैं बारिश हूं।।
मैं रिमझिम-रिमझिम बरस पड़ूं,
तो नदियां बहने लगती हैं।
घनघोर घटा बन जाती हूं,
मैं बेमौसम भी आती हूं।।
मैं किस्मत दीन किसानों की,
मैं सावन की गुजारिश हूं.....मैं बारिश हूं।।
अंबर से पुराना नाता है,
मेरी मंजिल बन जाता है।
नदिया बनकर में बहती हूं,
घनघोर घटा में रहती हूं।।
मैं ही माघ महावट हूं,
मैं हरियाली सजावट हूँ.....मैं बारिश हूं।।