कोरोना
कोरोना
उत्पाद चीन के महा उत्पाती,
तू घर अपने कब जाएगा ?
बहुत हो चुकी तेरी लीला
कब तक हमें सताएगा ?
तेरी माया में फँस कर हम,
जीवन-रस से हैं दूर हुए
मनुज बना मनुज का शत्रु
भाव विवश और क्रूर हुए।
सड़कें सुनीं, गलियाँ सुनीं,
है कोल-किलोल चीत्कार भी सूना
कक्षा की दीवारें सूनीं
सूना बचपन का कोना-कोना।
है श्वास-श्वास पर तेरा पहरा,
जैसे तू कोई शाप हो ठहरा
है दवा,दुआ में ठनी हुई अब-
हुआ जाता यह संशय गहरा।
है प्रकृति का वरदान तुझे,
ऐसा न समझ न पर्व मना
हम भी जो आज अधीर हुए,
हममें भी था कुछ गर्व तना।
तू भी जाएगा जग से मूर्ख,
तेरा भी होना है अंत
विकराल, विशाल भले है तू,
न समझ स्वयं को अनादि-अनंत।