पुकारा
पुकारा
सावन की घटाओं सी
जुल्फों की लट
झूल रही मेरे माथे पर।
का रे कजरारे नैनों से,
खुद को मिला रही है।
लाल रेशमी साड़ी
बदन मेरे लहरा
रही है।
मांग में सिंदूर
भाल पर दमकती बिंदिया।
नाक में लरझती नथिया,
कानो में झुमके डोल रहे।
खन-खन कंगना,
संग-संग चूड़ियां
मधुर-मधुर रस घोल रहे।
कब से बांट निहारूँ प्रियतम
ये श्रृंगार तुम्हारा है।
कब आओगे,कुछ तो बोलो
दिल ने तुम्हे पुकारा है
दिल ने तुम्हे पुकारा है

