STORYMIRROR

Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

4  

Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

प्रतिस्पर्धा

प्रतिस्पर्धा

1 min
435

मानव -मानव में,

हौड़ यहाँ !

प्रतिस्पर्धा का है,

दौड़ यहाँ !


कोई टकराता,

भाई भाई से !

लड़ता भी है,

हाथापाई से !


है दोष नहीं,

पर लोभ यहाँ !

प्रतिस्पर्धा का है

दौड़ यहाँ !


कभी धर्म लिए,

कभी संघ लिए !

लड़ता कटता है

आन लिए !


क्या यही सिखाता,

धर्म यहाँ ?

प्रतिस्पर्धा का है

दौड़ यहाँ !


लोगों में प्रेमों,

का हुआ ह्रास !

जन जीवन कम्पित,

हुआ त्रास !


क्या करें आज

अब जाएँ कहाँ ?

प्रतिस्पर्धा का है

दौड़ यहाँ !


भू पर युद्धों,

का जाल बिछा !

अम्बर में भी,

त्रिशक्ति भिड़ा !


भय -भय से है,

कम्पित,

सारा जहाँ !

प्रतिस्पर्धा का है

दौड़ यहाँ !


यह दौर नहीं

गृह -युद्धों का,

मानव युग के,

विध्वंशों का !


नहीं आत्म -प्रेम

नस -नस में यहाँ !

प्रतिस्पर्धा का है

दौड़ यहाँ !


मानव-मानव में,

हौड़ यहाँ !

प्रतिस्पर्धा का है,

दौड़ यहाँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy