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Yashraj Malvi

Fantasy Inspirational

4  

Yashraj Malvi

Fantasy Inspirational

प्रज्ज्वलन

प्रज्ज्वलन

2 mins
583


भूमिका - एक राही जो अपने आसपास के लोगों से परेशान है

और वह मानता है की असफलता नाम का अंधेरा उसे घेर रहा है

इसलिए वह संघर्ष कर के दीपक लेने जाता है,

वह अपना मनोबल कमजोर नहीं होने देता। 

और उसके साथ जो होता है और वह जो सीख सीखता है, वह बताता है।


राही कहता है,

भिन्न से चेहरे इस जगत में अलग राग सुनाते हैं,

उत्तर में दौड़ो - पश्चिम भागो अलग राह बताते हैं।

इस राग के भीषण स्वर से पथ छिन्न- भिन्न हो रहे,

आगे क्या है पीछे क्या था जान कर अनजान हो रहे।

परंतु जब चढ़ना पड़ेगा विशाल गिरिवर जब समय लगेगा दीर्घ महान,

जब प्रज्वलित होगा मेरा दीपक उज्जवल होगा यह संसार।


कड़ी कठोर अमावस्या ध्वांत पूर्ण “शशि हीन ”

रात, ले रूप बैरी का पराजय कर रही है घोर निपात 

पर जो गाड़ेगा हार पर झंडा वही बनेगा वीर महान,

जब प्रज्वलित होगा मेरा दीपक उज्जवल होगा यह संसार।।

आगे बढ़ा राही जब तो बाधाओं का बड़ा मैदान, 

“प्रोत्साहन ” की माटी पकड़े खड़ा संकट का शैतान।

राही होत लथपथ पसीने से तर

 तोड़े संकट के पाषाण

 पर संकट में जो मेहनत होती वही बनाती दीप सुजान।

 मिल गई प्रोत्साहन माटी, शीघ्र उज्जवल होगा यह संसार।।


बन गया है माटी दीपक परंतु ज्वाला हित चाहिए मेल,

अब आधा समझा राही नहीं सफलता सुलभता का खेल, 

कहां लालसा ! कहां लालसा !

 कहां “ लालसा ” का तेल !


तो खड़ा हो गया राही जाकर साहूकार की एक दुकान, 

देखा दृश्य अजब - निराला दिल में जाकर पड़ी दरार

 धरो “ शर्म ” एक तौल पर 

ले लो फिर तेल अपार। 


तो निकाला शर्म अपने दिल से, राही यह मौका आए ना फिर से 

सो, जो लालसा के लिए करे शर्म का दान 

वही प्रज्वलित करेगा दीपक

 बन जाएगा वीर महान।।

तो दीपक - तेल का मेल हो गया, यह बात बड़ी सुहाती 

एक चीज बची है बाकी -

बस “ त्याग ” की कपास बाती।


तो पहुंचा राही अपना, 

बड़े कपास के खेत, 

तोड़ा एक त्याग का फूल करके अपना मन विच्छेद। 

और,

बाती की तरह करेगा जो संघर्ष की अग्नि में त्याग 

वही करेगा सफलता से भेंट ।।

अंततः पूर्ण हुआ सफलता का पथ, जुड़े तार से तार 

 अब प्रज्वलित होगा मेरा दीपक उज्जवल होगा यह संसार। 


छिंटक- छिंटक कर गई ज्वाला 

चिल्ला - चिल्लाकर गाए जयगान - 

“ अंधेरों की बस्ती में आया प्रकाश का दीप सुजान ”

सिर झुका कर खड़े प्रतिद्वंदी बांध रहे अपना सामान 

बहुत संघर्ष के बाद राही का प्रज्वलित हो गया दीप महान।।


परंतु कुछ समय बाद राही को एक अमर शत्रु ने घेर लिया,

“ अहंकार ” चूर राही ने अपनत्व से मुंह फेर लिया।

तो दंड देने के लिए जब चली अहंकार आंधी 

बुझा दीप ख्याति का पकड़ा गया विधाता का अपराधी।

इससे सीख मिली हमें यह,

जो नहीं करेगा सफलता का अहंकार 

उसी के द्वारा प्रज्वलित होगा दीपक  उज्जवल होगा यह संसार।


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