week- 23 बचपन
week- 23 बचपन
वो बचपन प्यारा याद आता है
बीता वो मीठा लम्हा याद आता है
वो बचपन का गुजरा ज़माना याद आता है
वो स्कूल न जाने का बहाना करना याद आता है
वो पेंसिल का खो जाना
दूसरों की रबर चुराना
दोस्तो के साथ धमाल मस्ती करना
वो बचपन में शरारत कर कर माँ को तंग करना
वो जरा जरा सी बात पर झगड़ा करना
वो चाचा चौधरी की किताबे पढ़ ना
स्कूल से आकर कॉमिक्स पढ़ा करना
दोस्तो संग क्रिकेट खेलना पड़ोस के घर का शीशा तोड़ना
कभी पापा के कंधों का, तो कभी माँ के आँचल का सहारा था
वो खेल कूद छुप छुपाई खेलना
रंग बिरंगी पतंगों को लूटा जाना
वो गली में गिली डंडा खेलना
बारिश के पानी में कागज की कश्ती तैरा आना
वो किताबों की दुनिया वो परीक्षा की घड़ियाँ
वो दोस्तों के साथ लड़ना झगड़ा करना वो रूठना मनाना
दोस्तों के साथ मेला जाना और पते के दोने में ठंडी ठंडी बर्फ खाना
वो माँ की प्यार भरी थपकी वो माँ की लोरी याद आना
वो नए नए खिलौने से खेलना
बचपन का वो खजाना जिसमें थी किताब, क़लम, स्याही
वो दादा दादी से कहानियां सुनना
वो नानी के हाथों से बना स्वेटर, पापा की दी हुई पॉकेट मनी याद आती
माँ के हाथों से बने पकवानों का याद आना
लालटेन की रोशनी में पढ़ ना याद आना
वो पैर छूकर शिक्षक और बड़ों का अभिवादन याद आना
शाला के वार्षिकोत्सव में कार्यक्रम शुरू होने से पहले माँ सरस्वती का वंदन याद आना
वो बचपन प्यारा था ना जिक्र थकान का, ना फिक्र कल की होती थी
ना कोई परशानियों का झमेला था
ना पैसे कमाने के लिए संघर्ष
क्यों बड़े हुए हम वो मासूम प्यारा हँसता खेलता बचपन ही प्यारा था
यादों के झरोखों से अब भी झांकता बचपन, अब तो उम्र हो गई पचपन
वो प्यारे भूले बिसरे दिन याद आये
पुरानी यादों को याद कर आँखों का नम हो जाना।
