पुरुष
पुरुष
जो घर परिवार की जरूरत को पूरा करे ,पैसा कमाकर लाए,
अपने बच्चों की हर ख्वाहिश को जो पूरा करता हो
वह पुरुष है
जो अपनी पत्नी के सोचे उसका भला चाहे, उसे सजता संवरता देखे,
एक पत्नी के अरमान को पूरा करे ,जिंदगी के हर मोड़ पर उसका साथ निभाए
एक पति, सच्चा हमसफर बने
जो हर दुःख दर्द, और खुशियों में शामिल हो
वह पुरुष है
माता-पिता की जो सेवा कर्ता उनका ध्यान रखता,
कोई तकलीफ न हो जो सदा सम्मान व आदर करता हो
बूढ़े कदमों का जो अवलंबन कहलाता
वह पुरुष है
अपनी बहन की इस दुनिया की बुराइयों से रक्षा का वादा निभाता
उसकी हर ख्वाहिश को पूरा कर्ता
अपनी बहन से मस्ती मज़ाक कर उसके चेहरे पर मुस्कान जो लाता
एक भाई होने का फर्ज बखूबी निभाता
वह पुरुष है
जो सहज सरल पर अगणित पीड़ाएं चुपचाप सह लेता मन के भीतर,
दर्द से न चिल्ला ता ,अश्कों को अपने अंदर समेटे अधरों से बस मुस्करा जाता,
अंत स में सिर्फ दर्दों गम भर जो सब सह जाता
वह पुरुष है
जो कठोर, सज्जनता, सबलता का प्रतीक,
हर परिस्थिति को रख संतुलित सामंजस्य जीवन में जो बिठाता कर्ता अपने कर्तव्यों का निर्वाह
वह पुरुष है
ब्रह्मा, विष्णु, महेश जैसे त्रिदेव का जो प्रतिरूप, कभी देव रूप जैसा तो कभी रावण,
कंस जैसा दानव का रूप हो ये देव ,और दानव दोनों रूपों में जो विद्यमान हो
वह पुरुष है
राम भी कभी कृष्ण भी अजर अमर हनुमान भी है प्रिय सीता बिना,
राधा रुक्मणी के बिना मैं शून्य हूँ
वह पुरुष है
विधाता की रचना जो, नारी का अभिमान हूँ उम्मीदों का पहाड़ हूँ, आशा की मीनार हूँ,
परिवार का आधार उसकी नींव, परिवार का एतबार हूँ
जो न कभी जताया कर्ता बस अपना कार्य करता जाता, करता जो मेहनत
महीने के आखिर में वेतन लाता
परिवार का दामन खुशियों से भर देता अपनी ख्वाहिश को कफन उड़ाता जो पूरे परिवार का ध्यान रखता, बदले में चाहता तो सिर्फ अपने लिए सम्मान, आदर, प्यार और भावना अपनत्व की
होती नहीं उसके आखों में नमी पर उसके दिल में भी होते ज़ज्बात
दर्द में भी जो हमेशा मुस्करा जाता
अपने परिवार के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर्ता
जो आँखों से बात कर्ता
अपने आप में तो संपूर्ण फिर भी अधूरा है बिना एक स्त्री संग साथ के होता कहाँ मैं पूरा हूँ
केवल एक स्त्री पढ़ मेरी आँखों को मेरे दिल ज़ज्बात जो मेरी भावना को बखूबी समझती
मेरी आँखों को चुपके से पढ़ लेती
वह पुरुष है।
