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Aprajita singh

Abstract Fantasy

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Aprajita singh

Abstract Fantasy

"बूंद या सागर? "

"बूंद या सागर? "

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तुम बूँद हो या सागर, ये कौन जाने,

तुम बिन प्यास की तड़प कौन पहचाने।

अगर बुझ भी जाए ये प्यास गहरी,

दिल की बेकरारी कभी खत्म न माने।


तुम से मिलने की आस यूं ही बसी है,

हर क़दम पर ये चाहत जागी हुई है।

बूंदों में भी समंदर का एहसास आता है,

तेरे बिना हर खुशी अधूरी सी रहती है।


प्यास जो दिल में बसी है बरसों से,

वो बुझ कर भी कभी बुझती नहीं।

सागर में बूँदों का सफ़र है अनंत,

और इस दिल में तेरा ख़्याल यूं ही चलता है।


कभी लगता है प्यास मिट गई,

फिर भी दिल को राहत मिलती नहीं।

तेरी मौजूदगी का जो असर है,

वो ज़िन्दगी से कभी मिटता नहीं।



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