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Aprajita singh

Romance

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Aprajita singh

Romance

"तुझे अंग कहूँ या संग कहूँ? "

"तुझे अंग कहूँ या संग कहूँ? "

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अंग कहूँ या संग कहूँ, जब भी कहूँ हर पल कहूँ,

तेरे हर एहसास को, मैं दिल की गहराई से कहूँ।


साँसों में जो बसी है ख़ुशबू, वो तेरी ही यादों की,

रात के अंधेरों में, मैं तेरे होने की बात कहूँ।


तेरी नजरों का जादू, दिल पे लिखी एक दास्तां,

हर एक लम्हा, हर एक कदम, बस तेरा ही नाम कहूँ।


धड़कनें जो बयां करती हैं, वो तेरे ही अफसाने हैं,

मैं कैसे रोकूँ खुद को, तुझसे मिलने की चाह कहूँ।


अंग कहूँ या संग कहूँ, बस इतना जान तू,

जब भी तू पास हो, मैं ख़ुद को मुकम्मल कहूँ।


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