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Aprajita singh

Abstract Others

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Aprajita singh

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"तेरी तस्वीर"

"तेरी तस्वीर"

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किस भाषा में करूं तुझे व्यक्त,

शब्द हर बार चूक जाते हैं,

जो रंगों में भरूं तेरी छवि,

वो रंग भी फीके पड़ जाते हैं।


लकीरें खींचूं तेरी तस्वीर की,

पर कोई रेखा तेरे लिए बनी नहीं,

हर अक्स में तू बिखर सा जाता,

तेरी सूरत में एक कमी नहीं।


तेरा चेहरा, तेरा हर रंग,

जो भी देखूं, हर पल बदलता,

तेरे एहसास में डूबूं जितना,

हर बार नया सा तू मिलता।


तू है जैसे हवा का झोंका,

जो पकड़ा नहीं जा सकता कभी,

तेरे लिए न कोई कागज़ है,

न कोई रंग जो तुझे बाँध सके कभी।


मैं ढूंढूं लफ्ज़, तलाशूं रेखाएं,

तेरी तस्वीर कहां बनेगी इनमें,

क्योंकि तू खुद एक अज्ञात कला है,

जिसे बनाया न जा सके किसी फ्रेम में।


तेरे लिए कोई हीर नहीं बनी,

क्योंकि तू खुद एक कविता है अनकही,

तेरे हर रंग को पहचानते हैं हम,

पर उन्हें कैद करने का साहस नहीं।


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