"ज्ञात-अज्ञात का संगम"
"ज्ञात-अज्ञात का संगम"
जो तुझे ज्ञात है, उसे ज्ञात कर देना,
जो रह गया अज्ञात, उसे प्रकट कर देना,
जैसे अधूरी किताब में छिपा हो सार,
बस यूँ ही जीवन को तू सम्पूर्ण कर देना।
हर अधूरी राह पर सवाल बिछे हैं,
उत्तर का हर मोड़ अभी अनदेखा,
तू अपनी दृष्टि से वो अंधेरे मिटा,
और हर अज्ञात को प्रकाशित कर देना।
शब्द जो मौन में सिमटे रहे,
भावना जो वाणी में खो गई,
तू उसे अपने हृदय से सुन,
और उसे ज्ञान का मार्ग बना देना।
जीवन के हर कण में उलझे हैं प्रश्न,
प्रकृति में छिपे हैं उत्तर अनंत,
बस तू उन रहस्यों को पहचान,
और हर अज्ञात को ज्ञात कर देना।
तू चल जिस पथ पर, छिपी धुंधलाहट,
सत्य को ढूंढ, उसे प्रकाशित कर,
इस जीवन को तू ऐसे जला दे,
कि हर अज्ञात सत्य में बदल जाए।
