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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

रात होने को है

रात होने को है

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रात होने को है अब क्यों न तुम भी सो जाओ क्योंकि

मेरे इन आँखों में तेरे सपनों का यूं पहरा है 


न जाने क्यों इन रातों ने मुझे किस गहरी नींद ने घेरा रखा है

उठती हुई लौ की परछाई बनने के चिरागों से ओझल होने लगी ही है कि


मुझे उसकी यादें लिए अंगड़ाई भी आई है

चादर की सिलवटों पर लेते हैं , मेरी आंखों से नींदें समेटे हुए 


बरसों की यादें सुलझाए इन अंधेरी रातों में

तुझे हम अपने अफसाने को सुनाए बातों में


धीरे धीरे , तेरी तस्वीर को अपने दिल से लगाए है 

तुम्हारी यादों के साथ मैंने आज अपनी रातें को बिताए है


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