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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

इस जमाने में बिना चोट के ही दर्द होता है

इस जमाने में बिना चोट के ही दर्द होता है

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मैं सोच रहा था मन ही मन 

कुछ प्रश्न लिए अपने कठिन क्षण में 

बदला कुछ नहीं है मेरी समझ में, फिर भी 

इस जमाने में बिना चोट के ही दर्द होता है।


इस जमाने में ऐसा फूटा मेरा मुकद्दर

अपनों ने ही मुझ पर वार किया 

कौन भला इस बात को जानें 

इस जमाने में बिना चोट के ही दर्द होता है।


हमारा जीवन एक संग्राम है 

बस इतना ही कहना है सबसे मुझको 

अपना ख्याल रखना जरूरी है, क्योंकि 

इस जमाने में बिना चोट के ही दर्द होता है।


मिलना, बिछड़ना, पाना और खोना

यही तो सच्चाई है हमारे जीवन की

शायद कोई किनारा मिल जाएं

इस जमाने में बिना चोट के ही दर्द होता है।


मन उड़ता है कल्पना के सागर में 

रच जाता है सपनों का संसार

जहाँ से निकलना होता है मुश्किल

इस जमाने में बिना चोट के ही दर्द होता है।


अंबर के नीचे कुछ गज जमीन में 

हमारा रैन बसेरा है सज्जनों

कितनी अजीब है ये जिंदगी की कहानी 

इस जमाने में बिना चोट के ही दर्द होता है।



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