सर्पदंश - एक सच्ची घटना
सर्पदंश - एक सच्ची घटना
5:00 बजे घड़ी के अलार्म के साथ दिवाकर की नींद खुलती है "आखिर हैं तो शहरी ही रोज की जिंदगी में जल्दी उठकर दैनिक काम कर दफ्तर जाना" यह पंक्तियां दिवाकर के मुख से नहीं निकलती तो ऐसा लगता है कि शर्मा परिवार की सुबह ही नहीं हुई । वह पानी पीने जाता ही है तो अध खुली आंखों से देखता है की राजमण अपनी पलंग में नहीं है , वह दौड़ा-दौड़ा अपने कमरे में जाता है और कहता है - " विलोचना विलोचना हमारा राजमण अपने पलंग में नहीं है !
वह मंद आवाज में कहती है खेल रहा होगा आसपास, दिवाकर की चिंता बढ़ती जा रही थी,
वह गुस्से से कहता है - अरे अभी सूरज ने भी अपनी किरणों को नहीं समेटा है, इतनी सवेरे कहां जाएगा ।
विलोचना तेजी से घड़ी की ओर देखकर दिवाकर के साथ दरवाजे तक आती है, तब तक इंग्लिश गाना गुनगुनाता राजमण बाहर से दरवाजा खोलता है और आश्चर्य से विलोचना और दिवाकर उसे देखते हैं । तो क्या देखते हैं हरे - हरे कच्चे आम बाहों में दबाए राजमण मिट्टी, धूल और खरौंचों के साथ खड़ा है । वह बिना कुछ देखे बिना कहता है मम्मी पापा जो सवाल पूछने हैं एक-एक कर पूछो ।
पहले तेज स्वर् में विलोचना पूछती है - इतनी सूबह कहां और क्यों गया था ? वह कहता है मम्मी बाजू के बगीचे में आम के पेड़ों का जमावड़ा है, वहीं यह खट्टे -खट्टे हरे -हरे आम तोड़ने । विलोचना कटाक्ष में कहती है हां ना हम तो भूखे मार रहे हैं जैसे,
दिवाकर पूछता है, वहां किसके साथ थे कौन पेड़ में चढ़ा था और यह चोट कैसी है ?
राजमण गर्व से कहता है मैं चढ़ा था पिताजी ! मेरा सा अच्छा पेड़ चढ़ने वाला नगर में नहीं और कुछ बता पाता उससे पहले दिवाकर अकस्मात उसकी बात खंडन कर देता है । वह कहता है जरूर है ! विलोचना और राजमण दिवाकर की तरफ देखते हैं । राजमण बिना उसकी बात सुने हट करने लगा की कहानी सुनाओ बताओ कौन है, मेरे बराबर पेड़ चढ़ने वाला । दिवाकर की भी वाचन इच्छा जाग गई, उसने कहा जा पहले मुंह हाथ धो कर आ हम भी आते हैं,
तो दिवाकर अच्छे से अंदाज में बताना शुरू करता है लेकिन पहले वह विलोचना की गलतफहमी दूर करता है कि यह काल्पनिक कहानी नहीं है, अपितु सच्ची घटना । वह कहता है बेटा राजमण यह घटना तब की है जब मैं तुम से 3 साल बड़ा था और ना रोज की चिक -चिक, अलार्म, टीवी, गाड़ी, मोटर, ऑफिस कुछ नहीं था । हम गांव की जिंदगी चाव और सुकून से जीते नीम के दातुन, गाय का दूध, चैन की दाल रोटी, आम की डाल में झूला, गोधूलि और रात्रि में जमीन की नींद। मुझे धार्मिक और सांस्कृतिक चीजों से लगाव था मैं रोज सुबह प्रभु वंदन कर दिन चालू करता था मेरा एक परम मित्र अमरीश भी मेरी संगत का था। हम दोनों रामायण और देवी जस मंडली में रमा के भजन गाते थे । तो एक दिन अमरीश अपनी काली रंग की एटलस साइकिल में मेरे घर पहुंचा, मैं भोजन का निकला ही था तो वह दौड़ा दौड़ा मेरे घर आता है । अमरीश कहता है
" अरे ! दिवाकर तू जानता है कोस्ता गांव में बहुत बड़ी रामायण मंडली का आयोजन हो रहा है ।
मेरे मुख में खुशी से झलकने लगी थी। मैंने कहा कौन है आयोजक ? अमरीश रुक कर बोलता है हमारे धर्म बंधु गोपी चरण त्रिवेदी । मैं कहता हूं वही जो पंचमी के दिन शिव मंत्र का हजार बार जाप कराते है और बकरी पालन का उनका कार्य है ।
वह सिर हिलाकर हां कहता है और मुझसे पूछता है तो चलें क्या ? मैंने हां कर दी । तो हम दोनों मित्र साइकिल के हैंडल में सत्तू, शक्कर और पूड़ी ले कर चल दिए हम शाम की बेला में धर्म बंधु जी के घर पहुंचे। दोनों मित्रों ने धर्मबंधु जी और राम दरबार को प्रणाम कर मंडली में प्रवेश किया फिर क्या जैसे ही मैंने और अमरीश ने तान पकड़ी कब रात के 12 बज गए पता ही नहीं चला । हमारे स्वर गोपी जी के बेटे ने रोके और हमें भांग की गिलास पकड़ाई ऐसी भांग जो ऐसी लगती थी कि महादेव के पात्र से मिली हो धर्म बंधु जी एक तो बकरी पालक, बकरी के दूध से बनी भांग साथ में उसमें केसर, बादाम, इलायची, रस आदि और स्वाद बढ़ाने के लिए मोटी मलाई। हमने मजे में 6 गिलास पी ली ।
फिर क्या बेटा कहां राम मंडली ! कहां के गोपी जी !कौन अमरीश ! कौन दिवाकर ! हर जगह यह आंखों में वही भांग और उसका नशा में तो होश हवास में नहीं था जैसे तैसे अमरीश ने मुझे दो सागौन के पेड़ों में बंधे झूले में लिटाया । मैं आज भी अमरीश और दो सागौन के पेड़ों का आभारी हूं। रात की उस बेला ने मुझे समयहीन कर दिया था, जैसे तैसे रात गुजरी भोर में मैंने सबसे पहले अमरीश को ढूंढने का फैसला किया मैं उसे ढूंढ रहा था कि मैंने देखा बाड़ी में लगे नीम के पेड़ से टिका अमरीश नींद का आनंद ले रहा था अच्छा, उसे तो सूरज भी नहीं जगा पाया ऐसी जगह हड़पी थी उसने ।
फिर हमने दैनिक कार्य कर गोपी जी से जाने की आज्ञा मांग रहे थे की, बिरजू चाचा चिल्लाने की आवाज आई । हम तीनो लोग उनके पास पहुंच गए, गोपी जी ने उनसे पूछा बीरा क्यों चिल्ला रहा है वह कहते हैं सुमरण के लड़के को नाग ने जकड़ लिया, पूरा गांव वहां तमाशा देख रहा है । हमने भी गोपी जी से वहां जाने का रास्ता मांगा वह कहते हैं पुराने शिव मंदिर के पास बहुत सारे पेड़ों में छींद पकी है, वह शिव मंदिर लाखों सालों से प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रहा है वहां सांप, बिच्छू जैसे आदि जीवों का निवास है शायद वही हो, हम चार लोग वहां जा पहुंचे हकीकत में वह मंदिर काफी पुराना हो गया था सिर्फ शिवलिंग सुरक्षित था। बड़े छींद के पेड़ में - सुमरण का लड़का नाग के मंडला कार में ऐसा बंधा था जैसे बोरी बंधी हो ! सुमरण और उसकी पत्नी दोनों का रो रो कर बुरा हाल था, घटना में सरपंच साहब जी भी उपस्थित थे लेकिन किसी को भी कोई युक्ति समझ नहीं आ रही थी । यह सांप को कैसे मारे और बच्चे को कैसे बचाएं, गोपी चरण जी और सरपंच के बीच में वार्तालाप हो रही थी ।
सरपंच जी कहते हैं, आज यह लड़का गया या तो यह सांप गया शायद इस बच्चे की मृत्यु आ गई हो ?
गोपी जी मुस्कुराकर कहते हैं यह भी तो हो सकता है कि इस लड़के को को कुछ ना हो और कोई अनभिज्ञ खुद अपनी मृत्यु लेने आ जाए । यह तो भगवान का निर्णय है । उतने में सुमरण ग्राम पटेल श्री विशंभर नाथ पटेल को लेकर आ जाता है। ऐसा पता था की विशंभर जी की बंदूक के चर्चे पूरे जिले में थे । तो क्या था जैसे ही पटेल ने बंदूक में 4 नंबर की गोली डाल कर विषधर की ओर तानी, पूरे गांव को लगा बस कहानी खत्म लेकिन भगवान को कुछ और मंजूर था ।
पूरा गांव सांप के मरने का इंतजार कर रहा था।
छींद के पेड़ के नीचे खड़े विशंभर नाथ पटेल ने जैसे ही बंदूक दबाई वह गोली नाग के फन में सीधी जा लगी, सांप का फन जैसे ही नीचे आने लगा,
वह फन सीधा बंडी पहने पटेल की बांह में जा फंसा पूरा गांव अचंभे में पड़ गया चारों तरफ सन्नाटा बिखर गया और उस सांप और विशंभर नाथ पटेल ने एक साथ प्राण छोड़ें । गोपी जी की बात मानो ब्रह्म वाक्य हो गई जो परम संकट में था वह बच गया और जो अनभिज्ञ था वह चला गया । सुमरण का लड़का सही सलामत नीचे उतर गया ।
दोनों मित्रों ने एक बात सीखी अहंकार किसी भी चीज का हाे ज्यादा समय नहीं टिकता तथा जो भगवान इच्छा होती हैं वही होता है ।
यह घटना देख कर हम दोनों मित्र गोपी जी, वह सांप और विशंभर नाथ पटेल जी को प्रणाम कर लौट आए।