मुलाकात
मुलाकात
आज जब बरसो बाद देखा उनको,
मन जैसे अंदर तक रो पड़ा ।
मैं जहाँ थी वही ठहर गई, लम्हा बीतता गाया ।
साँसे चल रही थी पर धड़कन थी रुकी,
तुमने पास आकर जो पुछा "कैसी हो" ?
मानो ज़िंदगी वहीं थम गई मेरी ।
सोचती हूँ क्या जवाब दूँ तुमको,
क्यूंकी आखरी दफ़ा खुश तो तुम्हारे सीने पर सर रख के ही थी,
और ग़मगीन भी तुमसे अलग होने पे ही हुई थी ।
उसके बाद से तो बस जीती ही जा रही हूँ मैं।
कभी इसके लिये तो कभी उसके लिए मुस्कुरा रही हूँ मैं ।
आज भी तुम सफ़ेद शार्ट में उतने ही खिलते हो जैसे सालो पहले थे।
जब पहली दफा आँखें मिले थी तुमसे, सफ़ेद रंग पहने सब से अलग नज़र आ रहें थे ।
आज फिर रंगो के इस मेले में मेरी नज़र ने तुमको ढूंढ लिया,
सदियों बाद दिल को फिर से जैसे धधकता महसूस किया ।
मन तो तुमको गले लगाने का था,
कस के हाथ थाम जाने का था ।
पर अब पहले से हालत न थे,
ना तुम वहाँ अकेले थे, और न हम अकेले थे ।
ये हाथ किसी और की उम्मीद बन के चल रहे थे,
न केवल इस जन्म बल्कि सातों जन्मों के बंधन में बंधे थे।
जिनकी कोई गलती नहीं है, उनको क्यों सज़ा दे हम,
चलो जहाँ है वही पर मुस्कुरा दें हम ।
यूं तो आज भी तुमको छोड़ने को सबसे बड़ी भूल मानती हूँ अपनी,
पर वो सच्ची प्रेम कहानी की क्या जिसमें बिछड़े न हो प्रेमी।
अगर एक पल के लिए, ये उम्र का बंधन, लोगों के रिश्ते, ये आज की पहचान भूला पाऊँ मैं,
तो सच कहती कहती हूँ की पूरी ज़िंदगी तुम्हारे साथ बिताऊँ मैं ।
