एक आम आदमी
एक आम आदमी
कुछ लोग बस जी रहें है,
अँधेरों में, उजालों में बस सब कुछ पी रहें है
वो रोज़ दौड़ रहें है, कमाने के लिए
ऑफिस का स्ट्रेस और बॉस की गालियाँ भी खा रहें है
लेकिन फिर भी चल रहें है
वो घंटो के ट्रैफिक जाम में फंस के थक के घर आते है
और तैयार रहते है घर की समस्याओं को सुलझाने
वो अपने दिन के बारे में कुछ नहीं बोलतें
पर ख़ामोशी से माँ के सारे शिकवे सुनते है
वो जानते है बातें दो तरफ़ा हुई होंगी
इसलिए कमरे में जाकर अपनी पत्नी की परेशानी भी समझते है
इन सब में जो सुकून के पल बच जाएँ उसमें वो अपने बच्चे की मुस्कराहटों को पढ़ते है
वो हर रोज़ ये करते है
उनको कोई इस आम सी ज़िंदगी जीने के लिए शाबाशी नहीं देता
कोई उन्हें प्रोत्साहित नहीं करता एक बार फिर दिन शुरू करने के लिए
पर वो आम सा आदमी खुद को फिर समेटता हुआ निकल पड़ता है अगले दिन की जंग पे
वो छोटी सी ज़िंदगी में कमा भी रहा है, बचा भी रहा है
परिवार को हर ख़ुशी दिला भी रहा है
शायद बहुत ज्यादा नहीं, पर कोशिश पूरी कर रहा है
पर इन आम लोगों को क्यों इतना सब करने पर भी तारीफ नहीं मिलती
उनकी ज़िंदगी को औरो की तरह लाइम लाइट नहीं मिलती
चलिए कुछ बदलते है, ऐसे हर आम आदमी की हौसला अफ़ज़ाई करते है
उन्हें नया दिन शुरू करने की लिए मोटीवेट करते है
उनकी आम सी ज़िंदगी को खास सा करते हैं
