दिल का गुलाब
दिल का गुलाब
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जो बरसता है तिरे इश्क़ का आब,
तो है खिल उठता मेरे दिल का गुलाब।
कि मुनव्वर करे अँधेरी ये रात ,
तिरी सूरत का परतव-ए-माहताब।
तिरी क़ुर्बत में कुछ अजब सा नशा है,
ख़ुशी से झूमा हूँ बिना ही शराब।
कहीं लग जाए ना नज़र तुझे सबकी,
कि ज़रा रुख़ पे पहनो तुम भी हिजाब।
यूँ जमाल-ए-सनम की आँखों के आगे,
फ़िके पड़ते सितारे ओ आफ़ताब।
तिरा 'ज़ोया' दिवाना कौन नहीं है!
मिला है ये शरीफ़ को भी ख़िताब।
12th February / Poem7