STORYMIRROR

Jalpa lalani 'Zoya'

Abstract Drama Romance

4  

Jalpa lalani 'Zoya'

Abstract Drama Romance

दिल का गुलाब

दिल का गुलाब

1 min
278


1122  1212  1121


जो बरसता है तिरे इश्क़ का आब,

तो है खिल उठता मेरे दिल का गुलाब।


कि मुनव्वर करे अँधेरी ये रात ,

तिरी सूरत का परतव-ए-माहताब।


तिरी क़ुर्बत में कुछ अजब सा नशा है,

ख़ुशी से झूमा हूँ बिना ही शराब।


Advertisement

font-family: Arial; color: rgb(0, 0, 0); font-variant-numeric: normal; font-variant-east-asian: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">कहीं लग जाए ना नज़र तुझे सबकी,

कि ज़रा रुख़ पे पहनो तुम भी हिजाब।


यूँ जमाल-ए-सनम की आँखों के आगे,

फ़िके पड़ते सितारे ओ आफ़ताब।



तिरा 'ज़ोया' दिवाना कौन नहीं है!

मिला है ये शरीफ़ को भी  ख़िताब।

12th February / Poem7


Rate this content
Log in

More hindi poem from Jalpa lalani 'Zoya'

Similar hindi poem from Abstract