शीर्षक: एक पहलू यह भी
शीर्षक: एक पहलू यह भी
मेरी नज़र दूर पहाड़ों को
नेत्रों के आलिंगन में लेकर
न जाने विचारों के बीच
अपने जज्बातों को क्या
स्वरूप देना चाहती थीं!
तभी बिल्कुल नजदीक से
धूप से भरे अहाते में
एक पीला, सूखा पत्ता
अपनी डाली से विदा लेते हुए
मदमस्त चाल में
हवा की लहरों संग नाचते हुए
धरती की ओर अग्रसर हो रहा था
और धरती भी खुली बांहों से
उसको अपने बांहों में लेने के लिए
आतुर हो रही थी।
उसकी कोमल चंदन सी त्वचा
मुझे अकस्मात अपनी ओर
खींच रही थीं।
मैं पूर्ण आश्चर्यचकित अवस्था में
उसका विधि - विधान के प्रति आदर,
उसका अद्वितीय आकर्षक स्वरूप,
मुझे धरती पर शांत पड़े
हर पीले पत्ते की अवस्था से
अवगत करा रही थी।
हर पत्ता एक कहानी लिए
मंद मंद मुस्कुरा रहा था।
मैं उनको छूना चाहती थी,
उनसे सवाल करना चाहती थी
कि अपने स्रोत से बिछड़कर
वे कैसा महसूस कर रहे थे,
पर यह सोचकर कि मेरा स्पर्श
कहीं उन्हें तबाह न कर दे,
मैंने अपनी भावनाओं पर संयम रखा
और मूक दृष्टि से उनकी देह,
उनकी धड़कन को
महसूस करने की कोशिश कर रही थी।
जी हां! जब तक कोई जीव जीवन परिक्रमा
पूर्ण नहीं करता, उसके किसी कण में
जान होती है, चाहे दिखने में
निर्जीव लगे।
मैं गहरी सोच में थी
तभी एक झाड़ू की तीलियों ने
उन पत्तों को समेटकर
उन्हें एक कूड़ेदान के हवाले किया
जहां उनका अस्तित्व
उस पल समाप्त होने जा रहा था।
जीवन का कालचक्र उस पल
अपनी चरम सीमा पूर्ण करके
वापिस सृष्टि में सम्मिलित
होने जा रहा था।
न जाने कितने सावन
उनके वजूद के साक्षी रहे होंगे!
न जाने उनके कितने सवाल
अनसुलझे रहे होंगे!
जीवन का सार सृष्टि के
कण कण में है,
कुछ वास्तविक है, बिल्कुल समक्ष,
कुछ को इंसान ने खोज लिया है,
पर कुछ से अनभिज्ञ रहना ही
हमारे अस्तित्व के लिए ठीक है
ताकि ईश्वर की आस्था
किसी अथाह प्रवाह में बह न जाए,
क्योंकि ईश्वर की इस कायनात को
जितना कुरेदेंगे, उतने ही वेग से
प्रलय रूपी घटनाओं से
हमारा सामना होगा।.......
