प्रीत की डोर कैसी है
प्रीत की डोर कैसी है
प्रीत की डोर कैसी है तुमसे हमें
चाँद से रोशनी जैसे जा न सकें,
पलकें रात जगी भीगी भीगी,
सांसो में आस जमी धीमी धीमी,
दूर तुमसे हम न जा सकें,
मन की डोर तुमसे ऐसी बंधी,
वक्त का चक्र कैसा मिटा न सके,
यादों के पहलू को यूं भुला न सकें।।
हौसला तू है मेरा करम या खुदा
सोच में हस्ती तेरी मिटा न सका
रीत की बात कहते कुछ लोग यहाँ,
शराबों में जैसे ग़म छुपा न सकें,
मौत की आबरू में सुला के हमें,
फिर भी तुम दूर हमसे जा न सकें,
याद को हम तेरी मिटा न सकें,
प्रीत की डोर कैसी है तुमसे हमें
चाँद से रोशनी जैसे जा न सकें।।