पंखो से पंख मिलेंगे क्या ?
पंखो से पंख मिलेंगे क्या ?
आज सुबह...
जब खुली आँख तो
पक्षियों की चहचहाहट से....
बाहर निकल कर देखा तो
दो पक्षी.....
घने बादलों के बीच
धीरे धीरे नीचे उतरते
एक दरख़्त पर आ बैठे है....
इक दूजे के पंखों को वो
स्पर्श करते....
अध सोए अध जागे से
जग को बिसराये है...
आया तभी जोर का झोखा
टिस उठा दी तन मन में...
उड़ गये तभी विस्मित होकर
खुले हुए आसमानों में.....
सहज ना हो सका प्रेम उनका
देख के सारा मंज़र ये.....
तब लौट चली मैं व्याकुल सी......!!
अचरज और जर्जर मन से
सोच रही मन ही मन
फ़िर से नई सुबह होगी
और फ़िर उन दोनों पक्षियों के....
पंख से पंख मिलेंगे क्या....